Home रीति रिवाज़ झिंझिया (ढिरिया)

झिंझिया (ढिरिया)

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चित्र व आलेख- विकास वैभव

Jhinjhiya (Dhiriya)- शरदीय नवरात्र में अष्टमी से पूर्णिमा की रात्री तक झिंझिया का उत्सव मनाया जाता है। मटकी में अनेक छेद करके उस के अन्दर प्रज्ज्वलित दीपक रखा जाता है। जिससे उसका झिलमिल प्रकाश बाहर आता रहता है।

केन्द्र में नर्तकी झिंझिया सिर पर रख कर नृत्य करती है, शेष वृत्ताकार खड़े होकर तालियों की थाप देकर झिंझिया गीत गाती हैं। वाद्यों में ढोलक, झींका, मंजीरा आदि प्रयुक्त होते हैं। बालिकायें आशीष के अक्षत घर में डालती हैं। अंतिम दिन धूम धाम से झिंझिया का टेसू से विवाह किया जाता है।

पूॅंछत पूॅंछत आये हैं नारे सुआटा, कौन बड़ी री तेरी पौर।
पौरन बैठे भईया पहिरिया नारे सुआटा, खिरकिन बैठे कोतवाल।

हरो दुपट्टा नील को नारे सुआटा, कौन बड़ी री तेरी पौर।
कोतवाली को चौहान नारे सुआटा, बड़भागी को द्वार।
चौकी बनी चारो खूंट की नारे सुआटा, चौकी के चारो ओर खॅूट।
जा पे बिराजे भैया डेढ़ सौ नारे सुआटा, इन में विरन मेरे कौन।
घोड़े तो बाॅंधो करील से नारे सुआटा, घरियल घामे बिलमाऔ।
लाल पाग खड़गा लिये नारे सुआटा, नीली घुड़न असवार।
जनों जानों भईया न जाने नारे सुआटा, हम सब विरन तुम्हार।

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