चित्र व आलेख- विकास वैभव
Maurai Chhat- बुन्देलखण्ड में विवाह के अवसर पर खजूर के पŸाों से दूल्हा दुल्हन का मौर बनता है, जिसे पहनाकर विवाह सम्पन्न होता है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष षष्ठी को मोराई छट कहते हैं। इस दिन उसी वर्ष सम्पन्न हुये विवाहों के मौर निकट के तालाब में विसर्जित किये जाते हैंै। जिन परिवारों में उसी वर्ष विवाह सम्पन्न हुए हैं, उस परिवार के सदस्य इस दिन दूल्हा-दुल्हन के मौर, मुकुट, मण्डप एवं अन्य सामग्री को मंगल गीत गाते हुए किसी नदी या तालाब में विसर्जित करते हैं। जिस कारण नदी और तालाबों पर मेला सा लग जाता है। लोग अपनी बेटियों के घर मिष्ठान, परिवार के सदस्यों के लिए कपड़े व श्रृंगार का सामान आदि भेजते हैं।

इसे सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। भगवान सूर्य को समर्पित यह दिन सूर्य उपासना एवं व्रत रखने के लिए विशेष महत्व रखता है। भगवान सूर्यदेव को लाल रंग अधिक पसन्द है, अतः इस दिन उन्हें गुलाल, चन्दन, वस्त्र, फल, फूल व मिठाई सभी लाल रंग के ही अर्पित करके प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए। इस दिन गंगा स्नान करने से अक्षय पुण्य फल प्राप्त होता है।

स्थानीय बुन्देली रीति रिवाजों की जानकारी, अपने आलेख व चित्रण से अद्वतीय है, हार्दिक आभार