चित्र व आलेख- विकास वैभव
Diwali (Deepawali)- कार्तिक माह की अमावस्य ( 31 अक्टूबर ) को दिवाली पर्व उत्साह, उल्लास व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। बुन्देलखण्ड में मनाये जाने वाले सभी पर्वों में ‘दिवाली’ का अत्यधिक महत्व है। माना जाता है कि इस दिन अयोध्या के राजा श्री राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने अपने प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित होकर घी के दिये जलाए थे। कार्तिक मास की वह अमावस्या की रात दियों की रोशनी में जगमगा उठी थी। तब से आज तक यह पर्व मनाया जाता है। कई दिन पूर्व से घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता है। दिवाली पर घर-बाजार सब स्वच्छ और सजे हुए दिखते हैं।
बुन्देलखण्ड में दिवाली पर दीवाल पर ‘सुराती’ का चित्रण कर पूजा की जाती है। इस के बाद मिट्टी के इक्कीस दिये जलाये जाते है, और गणेश-लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। चौक पूर कर पटे पर लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति रखी जाती है, और सामने चाॅंदी के सिक्के, आभूषण, सिन्दूर, नारियल, कौड़ी, खील-बतासे, फल, मिष्ठान आदि रखे जाते हैं। घर का मुखिया पूजा करके परिवार के सभी सदस्यों को टीका लगाकर रुपये देता है। सुराती को सारे दुखों का नाश करने वाला अति पराक्रमी माना गया है। वह न केवल लक्ष्मी प्राप्ति में सहायक होता है बल्कि उसे बनाये रखने व उसकी रक्षा करने में भी सहायता देता है।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्य को ही देवी कमला (लक्ष्मी जी) की जयन्ति भी होती है। ब्रह्मपुराण के अनुसार इस दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। देवी लक्ष्मी को श्री (समृद्धि) की देवी माना जाता है। इस कारण इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। झाॅंसी में चित्योरी कलाकार दिवाली के अवसर पर पूजा के लिए कागज पर ‘पना’ (लक्ष्मी जी के चित्र) बनाते हैं।

nice 🌈
Awesome👏👏