आलेख – विकास वैभव
Kajarian (Bhujarian)- कजरियां या भुंजरियां का त्योहार बुन्देलखण्ड में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। नाग पंचमी के बाद श्रावण मास शुक्ल पक्ष की नवमी को कजरियां (भुंजरियां) बोई जाती हैं। बालिकायें छेवले के पत्तों से बने दोनों में काली मिट्टी भर कर उन में गेंहू और जौ के दाने भर कर पूजा के आले में रख देती हैं। प्रतिदिन पानी-दूध से इन्हें सींचा जाता है। भाद्रपद कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को श्रावण त्योहार के दूसरे दिन लगभग आठ नौ दिनों में गेंहू और जौ के अंकुर पाॅंच छः इंच लम्बे उग आते हैं। पहले घर में विधि-विधान से इनका पूजन होता है, राखी चढ़ाई जाती है, भोग लगाया जाता है।

कजरिया के दिन शाम को दोनों को टोकरी में रखकर युवतियाॅं लोकगीत गाती हुई गाॅंव के पास जलाशय, नदी, तालाब, बाबड़ी आदि में समूह बनाकर जाती हैं। वहाॅं दोनों से गेंहू के अंकुर निकाले जाते हैं, जिन्हे खौटना कहते हैं। इस के बाद दोनों को सिरा कर, युवतियां इन कजरियों को अपने स्नेहीजनों को प्रदान करती हैं। कजरियां भी रक्षा कवच के रूप में मानी जाती हैं। तालाब से लौटते समय जन-समूह भारी संख्या में रास्ते के दोनों किनारे खड़े हो जाते हैं। स्त्रियां सभी को कजरियां देती हुई आगे बढ़ती जाती हैं। लोग इन कजरियों को माथे से स्पर्श करके उनका आदर करते है।
वाह वाह, अति उत्तम, सार्थक प्रस्तुतिकरण। बुन्देली रीति ररिवाज पे अद्वतीय योगदान।
Ati sundar lekh