आलेख- विकास वैभव

Effects of Colors- ऋगवेद में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। संसार की अनेकानेक आवश्सकताओं की पूर्ति के अतिरिक्त सूर्य मनुष्य को आरोग्य भी प्रदान करता है। सूर्य की किरणों में पीला, लाल और नीला, ये तीन रंग ही प्रमुख माने गये हैं। आयुर्वेद चिकित्सा में उपचार का मूलभूत आधार भी शरीर में वात, पित्त और कफ की स्थिति को माना गया है। इन तीनों दोषों के कारण ही विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं। वात का रंग पीला, पित्त का लाल और कफ का नीला रंग माना गया है। वात-पित्त के समिश्रण से हरा एवं पित्त-कफ के मिलन से बैगनी रंग उत्पन्न होता है। मानव जीवन में रंगों का बड़ा महत्व है, रंग हमारे मन और शरीर को बहुत प्रभावित करते हैं। इसलिये जीवन में रंगों का सही सन्तुलन बनाने के लिए उनका चयन सावधानी पूर्वक करना चाहिए।

पीला रंग – पीले रंग को पसन्द करने वाले लोग कुशाग्रबुद्धि, तीव्र स्मरण शक्ति वाले तथा परिश्रमी होते हैं। पीले रंग का प्रभाव हृदय संस्थान पर अधिक पड़ता है। विश्राम का द्योतक, नवीनतम एवं विकासशील स्थिति की ओर, तूफान की तरह उभरकर सामने आता है। अधिक आदरणीय बनने की चाह, आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए सत्त व्यग्र। पीले रंग में संयम, आदर्श, पुण्य, परोपकार का बाहुल्य है। पीले रंग में क्षमा, गंभीरता, उत्पादन, स्थिरता, वैभव, मजबूती, संजीदगी एवं भारीपन का गुण है। यह पाचन व्यवस्था, आंतों, गुर्दे, दिमाग की सक्रियता के लिए उपयोग किया जाता है। इसका प्रयोग गठिया, तनाव, उदासी, थकान, उन्माद आदि मनोविकारों से मुक्ति पाने के लिए भी किया जाता है। पेट व त्वचा के साथ मांसपेशियों को शक्ति देता है। पेट खराब होने व खाज खुजली में यह रंग काफी उपयोगी है। उच्च रक्तचाप कम करता है, दिमाग तेज करता है।
लाल रंग – लाल रंग गर्मी, उत्तेजना और चिड़चिड़ापन उत्पन्न करता है, इससे स्नायु विकार उत्पन्न हो सकते है। यह जीवन शक्ति, संकल्प शक्ति, तेजस्विता व कामुकता का आधार है। भूख व जिन्दादिली बढ़ाता है, भारी जोखम, नेतृत्व, सृजनशीलता व कामभोग की विकृति को पसन्द करता है। ध्वनी से प्रभाव कम होता है। अनिन्द्रा, कमजोरी, रक्त सम्बन्धी समस्या दूर करता है। लाल रंग के प्रयोग से ज्वर, दमा, कब्ज, चेचक, जोड़ों का दर्द, खाॅंसी, निमोनिया, मलेरिया, गर्दन व कमर दर्द में लाभ प्राप्त होता है। लाल रंग को नापसन्द करने वाला व्यक्ति इसके उत्तेजक गुणों को परेशानी पैदा करने वाला मानता है। अपने चारों ओर के वातावरण को खतरनाक व नियन्त्रण से बाहर मानता है। लाल रंग के अधिक उपयोग से फोड़े, फुन्सी, खुजली व रक्तचाप हो सकता है।
नीला रंग – नीला रंग शीतल, शान्तिदायक तथा ध्वनी का प्रभाव कम करता है। नीला रंग निश्चिन्तता, शान्ति, संवादशीलता, ज्ञान एवं सृजन का प्रतीक है। इसमें विचारशीलता, बुद्धि, सूक्ष्मता, विस्तार, सात्विकता, प्रेरणा, आकर्षण आदि गुण होते हैं। नीले रंग को पसन्द करने वाले स्वभाव से उदार, विश्वासी, सौन्दर्य प्रेमी और आराम तलब व्यक्ति होते हैं। श्वसन तन्त्र, माइग्रेन, आँख, नाक, कान और गले सम्बन्धी रोगों के उपचार में इस रंग का प्रयोग किया जाता है। बच्चों के अस्थमा, चिकन पाक्स और पीलिया के इलाज में भी प्रयुक्त होती है। ठण्डा होने के कारण हाई ब्लड प्रेशर को कम करता है। यह रंग एक तरह का एन्टीसेप्टिक है, इसके अलावा सिरदर्द, सूजन, सर्दी व खांसी से बचाता है। नीला रंग अनिन्द्रा, हैजा, बुखार, आमाशय, प्रदर रोग, दाॅंत, पायरिया, हिस्टीरिया, डायरिया, चर्म रोग एवं मुॅंह के छालों में लाभप्रद। हल्का नीला- सृजनात्मक व कलात्मक अभिरुचि। गहरा नीला- आनन्दप्रिय, तुरन्त निर्णय लेने वाला, महत्वाकांक्षी।
हरा रंग – हरा रंग ताजगी, उत्साह, स्फूर्ति एवं आँखों को शीतलता प्रदान करता है। हरे रंग को पसन्द करने वाले लोग सहयोगी, धैर्यवान, प्रकृति प्रेमी, बौद्धिक, प्रदर्शन प्रिय, मनमौजी, प्रभावित करने की इच्छा, स्थिर चित वाले, बेहद दयालू होते हैं। श्वसन तन्त्र, माइग्रेन, आँख, नाक, कान और गले सम्बन्धी रोगों के उपचार में इस रंग का प्रयोग किया जाता है। बच्चों के अस्थमा, चिकन पाक्स और पीलिया के इलाज में भी प्रयुक्त होती है। ठण्डा होने के कारण हाई ब्लड प्रेशर को कम करता है। यह रंग एक तरह का एन्टीसेप्टिक है, इसके अलावा सिरदर्द, सूजन, सर्दी व खांसी से बचाता है। नीला रंग अनिन्द्रा, हैजा, बुखार, आमाशय, प्रदर रोग, दाॅंत, पायरिया, हिस्टीरिया, डायरिया, चर्म रोग एवं मुॅंह के छालों में लाभप्रद। फोड़ों एवं जख्मों को भरने में यह मलहम जैसा कार्य करता है। पेचिस रोग, मांसपेशियों के दर्द एवं तनाव के लिए भी लाभकारी पाया गया है। दिल को स्वस्थ रखने के साथ हार्मोन को सन्तुलित रखता है, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। चर्म रोग व हाई ब्लड प्रेशर में फायेदेमन्द है। हरे रंग में आक्सीजन, कैल्सियम आदि होते है जिससे टाईफाइड, नेत्र रोग, खाॅंसी, जुखाम, बबासीर, मधुमेह में लाभ मिलता है।
नारंगी रंग – नारंगी रंग जीवन में आत्मविश्वास तथा साहस की जानकारी देता है। उत्साह व उर्जा का स्त्रोत है। पसन्द करने वालों में सामाजिकता की भावना होती है। इस रंग का प्रयोग अनेक प्रकार के दर्द, आंतों, गुर्दे, तिल्ली, अग्नाशय, उदर विकार एवं चिंता से जूझने वालों के उपचार के लिए किया जाता है। फेफड़ों व श्वसन प्रक्रिया को ठीक करता है, इसलिए नारंगी रंग अस्थमा, ब्रोनकाईटिस, गुर्दा संक्रमण में बेहद उपयोगी साबित होता है। ऐन्टीसेप्टिक व हाई ब्लड प्रेशर को कम करता है, इसके अलावा सिरदर्द, सूजन, सर्दी व खांसी से बचाता है। बुखार, मानसिक पीड़ा, वात रोग, निमोनिया, दमा, अस्थमा, श्वास सम्बन्धी रोग, क्षय, खूनी दस्त, अनिन्द्रा, पथरी व मूत्र रोग में लाभदायक है। बुद्धि का विकास होता है, पेट की गैस कम करता है, अम्लता दूर करता है, स्त्रियों की मासिक समस्यायें दूर करता है, स्नायु दुर्बलता, पक्षाघात, गठिया में लाभदायक है।
काला रंग – काला रंग तमोगुणी है, उसमें निराशा, शोक, दुखः एवं बोझिल मनोवृत्ति का परिचय मिलता है। वर्तमान व्यवस्था के विरोध में सब कुछ त्याग देना चाहता है। इसमें वह कोई मूर्खतापूर्ण कार्य भी कर सकता है। दृढ़ इच्छाशक्ति। यदि काले से पहले पीला रंग पसन्द करता था तो यह विनाशकारी कार्य या परिवर्तन का सूचक है।
सफेद रंग – सफेद रंग को पसन्द करने वाले लोग सामान्यतः शान्त, सरल, स्पष्टवादी होते हैं। सादगी, सात्विकता, सरलता की क्षमता होती है। नकारात्मक विचारों से दूर करता है, एकान्तप्रिय, बाद में कई विकारों से पीड़ित होता है। सफेद रंग रोगों का जल्द निवारण करता है।
बैगनी रंग – परिवर्तन का प्रतीक है। बैगनी रंग को पसन्द करने वाले लोग प्रदर्शन से परे, दूसरों को प्रसन्न तथा मुग्ध रखना चाहते हैं, भावनात्मक दृष्टि से अपरिपक्य। बैगनी रंग एकाग्रता बढ़ाने के साथ, हिस्टोरिया, भ्रम हो जाने के रोग को खत्म करने में सहायक है। खून में लाल कण बढ़ाता है, बुखार, योनि, प्रदर रोग व गले की बीमारियां दूर करता है।
कत्थई रंग – शारिरिक विश्राम तथा काम की तीव्र इच्छा व्यक्त करता है।
आसमानी रंग – स्नायु की ताकत बढ़ती है, खून का स्त्राव रुकता है, प्यास कम लगती है। सिर व बालों के रोग दूर होते हैं।
गुलाबी रंग – गुलाबी रंग में आशायें, उमंगें और सृजन की मनोभूमि बनने की विशेषता है।
स्लेटी रंग – व्यक्ति असंपक्त और अप्रतिबद्ध रहना चाहता है, ताकि स्वयं को वाह्य प्रभावों और उत्तेजनाओं से बचा सके।
भूरा रंग – वर्तमान व्यवस्था में ईमानदार, अपने हाथों पर भरोसा करने वाला। प्रकृति के निकट का पेशा अपनाते हैं।
चाकलेटी रंग – चाकलेटी रंग में एकता, ईमानदारी, सज्जनता के गुण हैं।

One thought on “रंगों के प्रभाव”
  1. बहुत ही खोज पूर्ण आलेख तथा नवचेतना को झंकृत करने में लेखक सफल रहा है। बहुत बहुत बधाई।
    राम औतार सिंह खंगार नीम मैन, लखनऊ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!