चित्र व आलेख- विकास वैभव सिंह
बुन्देली शैली के रूप में अपभ्रंश शैली का पुनरुत्थान राजा मान सिंह तोमर (1486-1518 ई.) के दरबार में हुआ था। जो ओरछा की छत्र छाया पा कर समग्र बुंदेलखंड में 20 वी. शदी के द्वितीय चरण तक जीवित रही।
विषय– बुन्देली चित्रकारों ने राग माला, रस माला, बिहारी सतसई, कविप्रिया, रसिक प्रिया, रामचंद्रिका, कृष्ण लीला, नायिका भेद पर आधारित चित्रों के साथ ही राजाओं के व्यक्ति चित्रों को प्रमुखता से अपने चित्रण का विषय बनाया।
आकृतियाँ अधिकतर दो चश्म (झांसी के चित्रों में एक चश्म) तथा पौने दो चश्म चेहरे बनाये। आकृतियों की ऊंचाई उनके सिर की छः गुना है। जो की खजुराहो की मूर्तियो का प्रभाव है। चित्रकार ने व्यक्ति चित्र में केवल रेखा तथा सुकोमल छाया से ही व्यक्ति के चरित्र व स्वभाव का निरूपण कर दिया है।

वस्त्र – पुरुष – सिर – पगड़ी, सेला, मंडील, पाग, साफा, मुडासा, पेंची, पुन्नेरी, पगोटे, सिंदेशाही पगड़ी, पेशवाई पगड़ी (झांसी) उर्ध्व वस्त्र – छः खूंट का जामा, कतैया, अंगरखा, बंडा, बगलबंदी, जहांगीरी, मिरजई, अल्फा। अधो वस्त्र-गरगा, कच्छा, ऊंची छोती, पजामा। जूते – पिस्सोरी (पेशावरी), पनैया, शिशुपाली, भृत्यों के सिर पर छोटे वस्त्र का मुडासा तथा कंधे पर छोटा वस्त्र रहता था। स्त्री वस्त्र – तीन या सात कली के लहंगे के ऊपर चुन्नी (कुछ हिस्सा खोसा हुआ) तथा चोली, कांछदार धोती (मराठी प्रभाव), बुंदेली चूड़ीदार पजामा।
आभूषण – पुरुष – तोड़ा, उरा, कलगी, भुजबंद, गुज्जा, बोडा। राजपरिवार – एक पैर में रजत आभूषण। राज महिर्षी – पैरो में स्वर्ण आभूषण। राज्य उत्तराधिकारी – पैर में एक स्वर्ण आभूषण। स्त्री – सिर – शीश फूल, बेंदी, दाऊनी, बिंदिया, पत्तियां। नाक – लोंग, पुंगरिया, दुर। कान – कर्ण फूल, तरकी, बाली, ढाल, पखरिया। गरदन – ढुली, लल्लरी, चिटौला, सद्दाना, विदानो, तिवानो, पलरा, तबिजिया। हाथ – भुजबंद, बज्जोला, गूंजे, गजरा, ककना, गजरिया, गेंदगजरा, चूरा, चुरियां, हथफूल, गदरिया। कटि – करधौनी। पैर – कड़िया, सीताफली, तोड़िया, बिछिया, झांझरिया, गुजरी, पट्टे, बांके, नेवरी, आंवली, पेजना, अनोखा। जूते – खीचाऊं।
पशु-पक्षी– हाथी, घोड़ा, गाय, शेर, सर्प, मगरमच्छ, ऊंट, तोता, मोर, हंस, बगुले, सारस, कबूतर।
प्रकृति – पहाड़, टीले, टोरिया तथा छोटी बड़ी नदियों को बनाया है। वृक्षों के एक एक पत्ते को सफेद रंग से युक्त हल्के हरे रंग से गहरी पृष्टिका पर अलंकारिक ढंग से बनाया है। जल के लिये नीले रंग पर सफेद लहरदार रेखाओं से बनाया है। वृक्षों में केला, आम, शीशम, बरगद तथा जामुन आदि को बनाया है।
भवन – भवनों में बुन्देली शैली के गुम्बदों की अधिकता है। दीवारों पर पैनेल या अंडाकार जाली बनी है। राज प्रासाद, दखार व भवन चूने के पुते बनाएं गये है। पृष्ठभूमि – पृष्ठभूमि में प्रायः टीले बनाये गये है जो सपाट है। अधिकतर सादा व सपाट पृष्ठभूमि बनाने की परम्परा रही।
आलेखन – आलेखन का प्रयोग कम तथा साधारण है। फर्श पर सुंदर बेल बूटियां बनाई गई है। वस्त्रों में पगड़ी तथा जामे में आलेखन का प्रयोग है। भवन सम्बन्धी आलेखन ज्यामिति है।परिप्रेक्ष्य, स्थिति जन्य लघुता – दार्ष्टिक परिप्रेक्ष्य का अभाव है। दूर तथा पास की आकृतियों की माप एक होने के कारण स्थिति जन्य लघुता दोष दृष्टिगत होता है। झांसी के चित्रों में महत्वपूर्ण मुख्य वस्तु बड़े आकार में तथा अन्य चीजों को उससे दूर एवं लघु आकार में चित्रित किया गया है।
लघु चित्र- कागज – तीन या चार कागजों को चिपकाकर एक मोटा कागज तैयार किया जाता था जिसे बसली कहते थे। रेखांकन – तैयार बसली पर टिपाई (रेखांकन) करते थे। रेखांकन शक्तिशाली एवं प्रभाव पूर्ण है। रेखांकन तूलिका द्वारा किया गया है। रंग भरना– रेखांकन के पश्चात आवश्यकतानुसार सपाट रंगो को लगा कर बहुत सूक्ष्म रेखाओं से उनकी खुलाई की जाती थी। साथ ही जहां पर छाया या किसी अन्य रंग की आवश्यकता होती उसे लगा देते। बुन्देली चित्रकारों ने सपाट, गंभीर तथा गहरे रंगो की रंग योजना को अपनाया है। रेखाएं बारीक है। गोलाई के लिए हल्की छाया का प्रयोग है। हाशिये – हाशिये आलेखन रहित सादा पट्टियों से बनाए है।
रंग – रंग सरल, सपाट तथा चमकदार प्रयोग हुए है। लाल तथा पीले का अधिक प्रयोग है। वनस्पति, रसायनिक तथा खनिज तीन प्रकार के रंगो का प्रयोग हुआ है। वनस्पति रंग – काला (काजल), नीला (नील), लाल (धवई वृक्ष व टेसू), पीला (ठाक)। रसायनिक रंग – सफेद (फूंका सीसा), लाल सिंदूर (पारे की भस्म), ईगुल (संगरफ), पीला (प्योड़ी)। खनिज रंग – लाल (हिरमिजी), गेरु, रामरज, स्वेत संगमरमर, स्वर्ण तथा चांदी। अन्य रंग – सीप, शंख, कोड़ी से श्वेत रंग बनाया जाता था।