आलेख- विकास वैभव सिंह
Jhansi Fort (U.P.)- उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम छोर पर झाॅंसी का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अति महत्वपूर्ण स्थान है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े होने के कारण प्रत्येक भारतीय इस दुर्ग से भावनात्मक लगाव रखता है। प्राचीन काल में चेदि महाजनपद, कालान्तर में जैजाकभुक्ति एवं वर्तमान में बुन्देलखण्ड के नाम से यह क्षेत्र जाना जाता है। इस दुर्ग पर क्रमशः गौड़ राजाओं, चंदेल राजाओं, खंगार राजाओं, बुन्देल राजाओं, उनके प्रतिनिधि रूप में गोसांइयों, मुगल तथा मराठाओं का अधिपत्य रहा। अन्तिम चरण में ईस्ट इण्डिया कम्पनी, रानी लक्ष्मीबाई, सिन्धिया के अधिकार में रहने के पष्चात यह दुर्ग ब्रिटिश सरकार के अधिपत्य में आ गया था। अंग्रेजों बंगरा की पहाड़ियों पर स्थित झाॅंसी का किला चंदेल कालीन है। किले का कुल क्षेत्रफल 49 एकड़ है जिसमें 15 एकड़ भूमि में मुख्य दुर्ग व दुर्ग प्राचीर निर्मित है। इसके दो तरफ रक्षा खाई तथा बीच बीच में कुल 22 ऊॅंचे गुर्ज बने हुये हैं । इस किले के निर्माण और विस्तार कार्य को पाॅंच चरणों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम गौड़ राजाओं द्वारा निर्माण, द्वितीय चंदेल राजाओं द्वारा, तृतीय बुन्देल राजाओं द्वारा चूने के प्लास्टर का प्रयोग, चतुर्थ मराठाओं द्वारा किये गये परिवर्तन, पंचम अंग्रेजों द्वारा की गयी तब्दीलियाॅं शामिल हैं।

निर्माण की दृष्टि से किले को तीन भागों – गणेश मन्दिर, शंकरगढ़ व पंचमहल में विभाजित किया जा सकता है। गणेश मन्दिर क्षेत्र बंगरा पहाड़ी का उत्तरी ढलान है। नगर से दुर्ग में प्रवेश करने पर सर्वप्रथम यह क्षेत्र मिलता है, यह पंचमहल में प्रवेश हेतु प्राचीन मार्ग है। चार विभिन्न स्थलों पर द्वार बना कर इस मार्ग की सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ की गयी थी। द्वितीय द्वार के पश्चात राजा गंगाधर राव द्वारा एक सुन्दर बारहदरी का निर्माण कराया गया था। बारहदरी का मध्य भाग पुष्प तथा ज्यामितिय आकृतियों से चित्रित है। इसकी छत कुण्ड के रूप में है, इस कुण्ड से जल चारों दिषाओं में गजमुख फब्बारों द्वारा निकलता था। बारहदरी के फब्बारों में जल प्रवाह हेतु ताम्बे तथा मिट्टी के पाइपों का संयोजन था। बारहदरी का फर्ष भी चैकोर कुण्ड के रूप में निर्मित किया गया था। प्रत्येक दिशा में कटावदार सुन्दर मेहराबों से सुसज्जित तीन तीन द्वारों का समायोजन बारहदरी में है।

बारहदरी के आगे तृतीय एवं चतुर्थ द्वार के मध्य ऊॅंचे मंच पर एक कक्षीय गणेश मन्दिर है। मन्दिर में दोनों पाश्र्वाें एवं सम्मुख भाग में कटावदार मेहराब का एक एक द्वार है। कौड़ी के प्लास्टर पर कत्थई रंग से चित्रण किया गया था। इसमें चतुर्मुखी गणपति की विशाल प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। गणेश मन्दिर के पीछे स्थित बुर्ज पर प्रसिद्ध तोप भवानी शंकर रखी है। चतुर्थ द्वार की ड्योढ़ी में दोनों पाश्र्वाें में तीन-तीन द्वार वाले कम ऊॅंचाई के दालान हैं इनकी छत पर पहुॅंचने हेतु जीने बने हैं, नौबतखाना है इस पर बैठकर मंगल वाद्य बजाये जाते थे। नौबतखाने में बजने वाले मंगल वाद्य राजा का यशोगान करते थे। नौबतखाना को पार कर झाॅंसी दुर्ग के सबसे बड़े मैदान में पहुॅंचते हैं। पंच महल के पूर्व में झाॅंसी दुर्ग का सबसे बड़ा मैदान है, यह बंगरा पहाड़ी का पूर्वी ढलान है, यहाॅं प्रसिद्ध कड़क बिजली तोप रखी हुई है।
बंगरा पहाड़ी के सम्पूर्ण उच्च क्षेत्र के मध्य में पंच महल का निर्माण किया गया था। राजा वीर सिंह द्वारा लाखौरी ईंटों से इस पंच महल का निर्माण करवाया गया जिस का प्रयोग रानी लक्ष्मीबाई द्वारा सभा कक्ष के रूप में किया जाता था। पंच महल के पष्चिम में अंग्रेजों द्वारा जल भण्डारण हेतु बनाये गये विशाल बन्द हौज में पाषाण के सुन्दर मेहराबों का प्रयोग किया गया है, जो मराठा कालीन हैं। पंच महल के निकट ही भैरव मन्दिर स्थित हैं। समीप ही 1857 ई0 के स्वतंत्रता संग्राम में वीरगति पाने वाले तोपची गुलाम गौस खाॅ खुदावख्ष तथा मोती बाई की मजार है।

मराठा शासक नारु शंकर द्वारा दुर्ग का पश्चिमी दिशा में विस्तार किया गया, जो शंकरगढ के नाम से जाना जाता है़। यहाॅं का कुॅंआ दुर्ग की जलापूर्ति का एक मात्र मुख्य साधन था। यहाॅं गर्भगृह तथा अर्धमण्डप से समायोजित शिव मन्दिर स्थित हैं। गर्भगृह में काले पाषाण का भव्य शिवलिंग है। शंकरगढ में काल कोठरी, फाॅसी घर आदि दर्शनीय स्थल हैं। झाॅंसी नगर विशाल सुरक्षा परकोटे में घिरा हुआ है, जिस में विभिन्न दिशाओं को आने जाने हेतु 10 दरबाजे एवं 4 खिडकियां (लघु द्वार) का निर्माण हुआ था।

दिसम्बर 2021 को उ॰ प्र॰ के नगर विकास विभाग द्वारा प्रदेश के सभी नगरों की पहचान सुनिश्चित करने के लिए उनका जन्म दिवस मनाने का निर्देश दिया गया था। अतः झाॅंसी की जन्मतिथि तय करने के लिए झाॅंसी नगर निगम के महापौर बिहारी लाल आर्य की अध्यक्षता में इतिहासकारों, शिक्षाविदों एवं समाजसेवियों की समिति बनाई गई। 18 जनवरी 2025 को इस समिति द्वारा सर्वसम्मति से 31 जनवरी का दिन निश्चित किया, क्यो कि ओरछा गजेटियर के अनुसार इसी दिन सन् 1618 ई॰ में झाॅंसी को यह नाम मिला था। इसके पहले यह नगर बलवन्त नगर के नाम से जाना जाता था।
निकट के दर्शनीय स्थल- राजकीय संग्रहालय, रघुनाथ राव महल, रानीमहल, सिटी चर्च एवं गुसांई मन्दिर (फूटा चौपङा) आदि।
बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विरासत का ज्ञान ऐसे ही मिलता रहे, भाई साहब🙏
बुन्देलखण्ड की धरोहर एवं ऐतिहासिक स्थलों की जानकारी के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद