चित्र व आलेख- विकास वैभव
Gosai Temple Group, Jhansi (U.P.)- जगतगुरु आदि शंकराचार्य के चार प्रधान शिष्य थे, इन प्रधान शिष्यों के दस शिष्य हुए। इन्ही दस शिष्यों के नाम से दस वर्ग स्थापित हुए, सम्मिलित रूप से ये सभी गोसांई कहलाते थे। ये संन्यासी अध्यात्मिक शक्ति के अतिरिक्त धर्मरक्षार्थ शस्त्र भी धारण करते थे। जिस कारण सत्रहवीं शताब्दी में ये एक सैनिक शक्ति के रूप में संगठित हो गए। गोसाइयों की एक शाखा झाँसी में बुन्देलों के प्रतिनिधि के रूप में शासन कर रही थी। सन् 1742 ई. में मराठा शासन की स्थापना हो जाने से इस क्षेत्र में गोसाइंयों की राजनैतिक शक्ति समाप्त हो गई, किन्तु उनका धार्मिक व सामाजिक वर्चस्व पूर्ववत बना रहा। नये शासन ने गोसांइयों के महत्व को स्वीकार किया। झाँसी के प्रथम मराठा प्रशासक नारोशंकर ने गोसांई महन्तों को भूमिदान तथा अन्य सुविधायें प्रदान कर सम्मानित किया था। झाँसी राज्य की सेना में गोसांइयों को महत्वपूर्ण पद प्राप्त हुये। गणपति गिरी रानी लक्ष्मीबाई की सेना में गोसांई सेनानायक था, जिसके नाम से नगर कोट की एक खिङकी (लघु द्वार) गणपत खिङकी कहलाती है। झाँसी गोसांइयों का केन्द्र था, अतः गोसांइयों ने यहाँ अनेक मठ, मन्दिर तथा समाधि मन्दिरों का निर्माण करवाया।
गोसांइयों ने अपने निवास के लिए विशाल मठों तथा पूजा अर्चन हेतु मन्दिरों का निर्माण करवाया था। गोसांई मूल रूप से संन्यासी थे अतः इनके शवों का अग्नि संस्कार न करके उन्हे समाधिस्थ किया जाता था। उनके अनुयायी इन समाधियों पर स्मृति स्वरूप मन्दिर के अनुरूप ही स्मारक बना दिया करते थे। इस प्रकार के स्मारक बाद में शिवलिंग की स्थापना के पश्चात मन्दिर के रूप में पूजनीय हो गये। नगर के बस स्टैण्ड के निकट हैबट मार्केट में स्थित यह गोसांइयों द्वारा निर्मित पाँच समाधि मन्दिरों का समूह है। इनका निर्माण ऊँची जगती पर है तथा गर्भगृह ऊँचे शिखरों से आवृत है। शिखरों के केन्द्र कलश, मणिचक्र एव॔ कमल से सुशोभित है।
निकट के दर्शनीय स्थल- स्टार फोर्ट, गोसांई शिव मन्दिर (फूटा चौपङा) आदि