चित्र व आलेख- विकास वैभव
State Museum, Jhansi (U.P.)- आधुनिक संग्रहालय के पूर्व कलाकृतियों का संरक्षण मन्दिरों तथा प्रेक्षागृहों में होता था। राजकीय संग्रहालय, झाँसी की पहली फाइल 1जनवरी, 1978 में जिला परिषद, झाँसी के परिसर में स्थित डाॅ.जे.पी.शुक्ला, रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के कार्यालय में खुली थी तथा इस नवीन राजकीय संग्रहालय के निदेशक के पद पर डाॅ.एस.डी.त्रिवेदी नियुक्त किए गए थे। संग्रहालय का प्रथम भवन कन्हैयालाल संस्कृत पाठशाला, ग्वालियर रोड में था। झाँसी किले के दक्षिण में स्थित 3.27 एकङ जमीन को रक्षा मंत्रालय से पुरातत्व विभाग के लिए प्राप्त करने में डाॅ.एस.डी.त्रिवेदी का निरन्तर प्रयास, भागदौड़ तथा लिखा पढ़ी सदैव याद रहेगी।
झाँसी दुर्ग के निकट दक्षिण में 3.27 एकङ जमीन पर बना है ऐतिहासिक एवं अद्भुत वस्तुओं से युक्त यह राजकीय संग्रहालय। 195 फीट लम्बे, 226 फीट चौङे तथा 51 फीट ऊँचे संग्रहालय भवन के निर्माण में 12 वर्ष 4 माह 11 दिन का समय तथा 6 करोङ 43 लाख 1 रुपया लगा था। संग्रहालय का शिलान्यास प्रधानमन्त्री स्व.इन्दिरा गाँधी ने 16 अक्टूबर 1982 को तथा लोकार्पण श्री मोतीलाल वोरा, राज्यपाल, उ.प्र. ने 29 फरवरी 1996 को किया था। संग्रहालय में लगभग 17000 कलाकृतियों का संग्रह है। संग्रहालय में पाषाण मूर्तियां, मृण मूर्तियां, धातु मूर्तियां, शिलालेख, ताम्रपत्र, सिक्के, मोहरो, मनके, पाण्डुलिपियां, विभिन्न शैली के लघुचित्र, अस्त्र-शस्त्र एव॔ वाद्ययंत्र आदि संग्रहीत हैं।
संग्रहालय का अधिकांश संग्रह संरक्षित संकलन रूप में व्यवस्थित है, जिसमें से चयनित कलाकृतियों को विभिन्न वीथिकाओं में प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय में संग्रह 10 दीर्घाओं में किया गया है। पहली दीर्घा भूतल पर है, जो पूरी तरह से रानी लक्ष्मीबाई के स्वतन्त्रता आन्दोलन को समर्पित है। पहली मंजिल पर 4 दीर्घायें है, दीर्घा संख्या 2 में बुन्देलखण्ड से प्राप्त लघुचित्रों को प्रदर्शित किया गया है। मध्ययुगीन काल की बुन्देलखण्ड से मिली पाषाण प्रतिमायें दीर्घा संख्या 3, 4 व 5 में रखी गई हैं। दीर्घा संख्या 4 जैन मूर्तियों के लिए समर्पित है तथा दीर्घा संख्या 5 शिव दीर्घा है, जो शिव परिवार को समर्पित है। दूसरी मंजिल पर दीर्घा संख्या 6 एवं 7 स्थापित हैं। दीर्घा संख्या 6 में कुषाण काल, चन्देल काल, उत्तर मध्यकाल, मुगल काल, बुन्देला काल तथा ब्रिटिश काल के सिक्के संग्रहीत हैं। दीर्घा संख्या 7 में प्रागैतिहासिक काल के तथा एरच से प्राप्त चित्रित काले भूरे मृद भांङों को प्रदर्शित किया गया है। तीसरी मंजिल पर दीर्घा संख्या 8, 9 एवं 10 स्थापित हैं। दीर्घा संख्या 8 बुन्देलखण्ड के लोकनृत्यों को समर्पित है। दीर्घा संख्या 9 में भारतीय डाक टिकटों को प्रदर्शित किया गया है। दीर्घा संख्या 10 स्वराज आन्दोलन तथा स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिए समर्पित है। इस के अलावा यहाँ डिजिटल गैलरी भी बनाई गई है, जहाँ स्क्रीन टच करते ही प्राचीन कालखण्ड की जानकारियाँ, साइकिल जोन में स्थिर साइकिल चालन से बुन्देलखण्ड की सङकों पर चलने का अहसास, हेलिकॉप्टर द्वारा पहाङों, कस्बों, नदियों के ऊपर सैर करने का अहसास किया जा सकता है।
संग्रहालय परिसर में एक बङा डायनासोर और एवोल्यूशन पार्क भी स्थापित किया गया है। पार्क में आदिम काल के मनुष्य और उसके बाद के चरण को प्रदर्शित किया गया है। शैक्षिक कार्यक्रमों के अन्तर्गत आम जनता एवं विद्वान जनों के लिए सेमिनार, सम्मेलन, कार्यशाला, प्रदर्शनी तथा प्रतियोगिताओं का आयोजन होता रहता है। शोधार्थियों के लिए निःशुल्क पुस्तकालय की सुविधा उपलब्ध है। छात्र समूह, गणमान्य व्यक्तियों तथा विशेष महमानों को प्रवेश निःशुल्क है। विविध कार्यक्रमों के आयोजन हेतु संग्रहालय में हाल उपलब्ध है। ए.टी.एम., रेलवे आरक्षण तथा मुद्रा विनिमय काउन्टर युक्त पर्यटन सुविधा केन्द्र संग्रहालय परिसर में स्थापित है। संग्रहालय में प्रवेश का समय प्रातः 10:30 बजे से सांय 4:30 बजे तक है, सोमवार को अवकाश रहता है।
संग्रहालय परिसर में ही उ.प्र. राज्य पुरातत्व विभाग की क्षेत्रीय इकाई का आफिस संचालित है। इकाई द्वारा सुनियोजित पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा अनेक महत्वपूर्ण मन्दिरों, किलों तथा बावलियों को प्रकाश में लाया गया, जो जनसामान्य की जानकारी में नहीं थे।
निकट के दर्शनीय स्थल- झाँसी दुर्ग, रानीमहल, सिटी चर्च, गोसांई शिव मन्दिर (फूटा चौपङा), रघुनाथ राव महल आदि।