चित्र व आलेख- विकास वैभव
झाॅंसी-कानपुर मार्ग पर मोंठ ( ने॰ हा॰-25 ) से उत्तर में 15 किमी॰ की दूरी पर समथर में स्थित है यह आदर्श मैदानी दुर्ग ,जिस का निर्माण 18 वीं शताव्दी का है। सत्रहवीे शताब्दी में बुन्देलखण्ड छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था, दतिया के श्री भगवान राय के काल में समथर राज्य अस्तित्व में आया। पूर्व में समथर बुन्देलखण्ड की छोटी सी रियासत थी। दतिया के महाराजा इन्द्रजीत सिंह के शासन काल में दतिया की गद्दी के लिये झगड़ा हुआ था। उस समय महाराजा इन्द्रजीत सिंह की नन्हे शाह गूजर ने बहुत सहायता की थी। जिसके उपलक्ष्य में इनके पुत्र मदन सिंह को समथर की किलेदारी और ‘राजधर’ की पदवी सौंपी गई, साथ ही इनके पुत्र देवी सिंह को पाॅंच गाॅवों की जागीर भी दे दी गई थी। कालान्तर में समथर स्वतन्त्र रूप से सुदृढ़ राज्य के रूप में स्थापित हो गया।

यहाॅं चित्रकारी के साथ साथ स्थापत्य एवं मूर्तिकला का भी विकास हुआ। समथर के किले में चौड़रा जू की बैठक, किले के अनेक कक्षों एवं बरामदों में ऐतिहासिक, सामाजिक तथा रामायण पर आधारित चित्रण किया गया है। यहाॅं चित्रकारी के साथ साथ स्थापत्य एवं मूर्तिकला का भी विकास हुआ। जिसका श्रेय यहाॅं के कलाकार सुखलाल, उनके पुत्र खुमान, खुमान के पुत्र सींगरी के अतिरिक्त शब्दल, लटोरे, ग्यासी तथा रामलाल माते को है। समथर के महल में टाइल्स का अलंकरण उपलब्ध है, जो बुन्देलखण्ड में सर्वप्रथम उदाहरण है। टाइल्स बनाने की कला का ज्ञाता समथर का बुलकिया परिवार है। आपके यहाॅं गत पाॅंच पीढ़ी से यह कला होती आई है। इनके पूर्वजों ने टाइल्स बनाने की यह कला एक अज्ञात वृद्धा से सीखी थी।
समथर राज्य के महाराजा हिन्दूपत सिंह तृतीय (1827-90ई.) के समय में बेतवा नहर (1882 ई.) बनी थी। महाराजा चतुर सिंह (1890-96 ई.) ने मुआवजा पाया था। समथर राज्य से 1884 ई. में मध्य रेलवे निकली।
निकट के दर्शनीय स्थल- विजयगढ़ की बावली, अम्मरगढ़ का किला, बाराखम्भा, कोंच आदि।
So realistic..
Thanx to vikas vaibhav for his dedication towards art and culture of buldekhand
Very nice article on Samthar fort, Jhansi