चित्र व आलेख- विकास वैभव
Todhi-Fatehpur Fort (Jhansi)- गुरसराय मार्ग (ने॰ हा॰-75) पर ग्राम पण्डवाहा से पश्चिम में लगभग 7 किमी॰ की दूरी पर स्थित है ग्राम टोढ़ी फतेहपुर। टोढ़ी फतेहपुर दुर्ग लगभग 300 वर्ष पुराना है। यह जलीय दुर्ग है जिसका निर्माण पतरई नदी के किनारे किया गया है। पूर्व में यह दुर्ग गुसाइयों के पास था, बाद में बुन्देलों ने इस पर अपना अधिपत्य जमाया। बुन्देल राजा दीवान राय सिंह जू देव ने इसे गोसाइयों से जीतने पर विजयोत्सव में पहाड़ी के नीचे फतेहपुर ग्राम की नींव डाली थी। कालान्तर में यह टोड़ी-फतेहपुर जागीर बनीं। यह किला पहाड़ पर बना हुआ है, इसके एक ओर तालाब, दूसरी ओर पक्की खाई तथा तीसरी ओर पहाड़ है। किला तीन हिस्सों में बना है, जिसकी बनावट से मुगलकाल, राजस्थानी कला तथा अंग्रेजी शासन के समय का निर्माण देखने को मिलता है। किले में सुरक्षा के लिये दो कोट हैं जो लगभग 30 फुट ऊॅंचे हैं तथा तीन विशाल दरवाजे बने हुये हैं जिनकी ऊॅंचाई तीन मंजिल है। यहाॅं फौज के सिपाही तैनात रहा करते थे। किले के अन्दर कई सुरंगें हैं जो आज भी देखी जा सकती हैं।

दीवान हर प्रसाद जू देव (1816-1858 ई.) ने किले का विस्तार किया एवं तिखण्डा मन्दिर निर्मित करवाया। इसका प्रथम खण्ड धनुशधारी का मन्दिर, द्वितीय खण्ड राज्य कुमार मन्दिर तथा तृतीय खण्ड छैल बिहारी का मन्दिर कहलाता है। मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर चूने के वज्रलेप से झालरें, वल्लरियां तथा प्रतिमायें उत्कार्ण की गई हैं। मन्दिर के अन्दर चित्रकला व नक्काशी देखने योग्य है, जिसमें रामायण व गीता की कथाओं पर आधारित 2000 से अधिक चित्र बने हुए हैं।
निकट के दर्शनीय स्थल- बंजारों का मन्दिर (स्यावरी), टहरौली दुर्ग, गुरसराय दुर्ग आदि।
