चित्र व आलेख- विकास वैभव
Champat Rai Palace, Kachnew (Jhansi,U.P.)-झाॅंसी खजुराहो मार्ग (ने॰हा॰-75) पर बंगरा से दक्षिण दिशा में 5 किमी॰ की दूरी पर ग्राम कचनेव में स्थित है यह महल। महल स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना है। इस महल में बुन्देल राजा चम्पत राय (1644-1721ई॰) का जन्म हुआ था और यहाॅं उनकी जागीर थी। ओरछा के राजा रुद्रप्रताप के पुत्रों में ज्येष्ठ भारतीचन्द जब ओरछा के राजा बने तब बंटवारे में राव उदयजीत सिंह को महेबा (महोबा नहीं) का जागीरदार बनाया गया, इन्ही की वंश परम्परा में चम्पतराय महेबा की गद्दी पर आसीन हुये। चम्पतराय बहुत ही वीर व बहादुर थे, दारा के विरुद्ध औरंगजेब की सहायता करने पर उन्हें ओरछा से यमुना तक का प्रदेश जागीर में दिया गया। दिल्ली दरबार के उमराव होते हुये भी चम्पतराय ने बुन्देलखण्ड को स्वाधीन करने का प्रयास किया और उन्होंने मुगलों के खिलाफ बगावत कर दी।
औरंगजेब ने हिन्दू सूबेदार शुभकरण को चंपतराय के विरुद्ध युद्ध अभियान पर भेजा। दुर्भाग्यवश चंपतराय के कई दरबारी औरंगजेब से जा मिले। पर राजा चंपतराय और रानी सारंधा ने अपना धैर्य और साहस नहीं छोड़ा, उन्होंने डटकर मुकाबला किया। लेकिन औरंगजेब के सैनिकों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी, लगातार आक्रमण के चलते राजा और रानी ने ओरछा से निकल जाना ही उचित समझा। ओरछा से निकल कर राजा तीन वर्षों तक बुन्देलखण्ड के जंगलों में भटकते रहे। एक दिन औरंगजेब के सैनिकों ने राजा को घेर लिया , तब राजा ने कहा कि औरंगजेब का बन्धक बनने से अच्छा है कि मैं यही वीरगति को प्राप्त होऊॅं। राजा ने रानी से कहा कि आप मुझे मार दें, क्योंकि में बन्धक नहीं बनना चाहता, रानी ने भारी मन से ऐसा ही किया। बादशाह के सैनिक रानी के साहस को देख कर दंग रह गये। कुछ ही देर बाद रानी ने भी अपनी उसी तलवार से स्वयं की गर्दन उड़ा दी।
निकट के दर्शनीय स्थल- शिव मन्दिर (गैराहा), जैन मन्दिर (रानीपुर) आदि।