स्कैच व आलेख- विकास वैभव
Kedarnath Temple, Rudraprayag (Uttarakhand)- केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक हैं। यहाॅं की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवम्बर माह के मध्य ही दर्शन के लिये खुलता है।

यह उत्तराखण्ड का सबसे विशाल शिव मन्दिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखण्डों को जोड़कर कत्यूरी शैली में बनाया गया है। मन्दिर लगभग 6 फुट ऊॅंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह प्राचीन है, जिसे 8 वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंश के जन्मेजय ने करवाया था, लेकिन ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदिगुरू श॔कराचार्य ने की। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं। केदारनाथ मन्दिर में श॔कर बैल की पीठ की आकृति-पिण्ड के रूप में पूजे जाते हैं।

शिव की भुजायें तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदम्देश्वर में, और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुये, इसलियें इन पाॅंच स्थानों को ‘‘ पंच केदार ’’ कहा जाता है, यहाॅं शिव जी के भव्य मन्दिर बने हैं। केदारनाथ मन्दिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊॅंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार फुट ऊॅंचा खर्चकुण्ड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊॅंचा भरत कुण्ड।

केदारनाथ मन्दिर न सिर्फ तीन पहाड़ों बल्कि यहाॅं पाॅंच नदियों मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी का संगम भी है। इन नदियों में से कुछ का अस्तित्व अब नहीं रहा लेकिन अलखनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद हैं।

निकट के दर्शनीय स्थल- भैरवनाथ मन्दिर, तुंगनाथ मन्दिर, रुद्रनाथ मन्दिर, मध्यमहेश्वर मन्दिर, कल्पेश्वर मन्दिर, अगस्त मुनी, गौरीकुण्ड, सोनप्रयाग, गुप्तकाशी, त्रियुगीनारायण मन्दिर आदि।

मेरे गोपेश्वर अर्थात चमोली के अध्ययन व भ्रमण के दौरान मुझे यहां के कई प्रमुख स्थलों में जाने व अवलोकन का सौभाग्य प्राप्त हुआ । मेरी तुंगनाथ की यात्रा यावत जीवन याद रहेगी। संभवतः तुंगनाथ की चोटी इस क्षेत्र की सबसे ऊंची मानी जाती है। मुख्य मार्ग पर चाय पीते समय तुंगनाथ मंदिर के बारे में जानकारी मिली। तभी दर्शन की इच्छा हुई। एक झबरा श्वान किस प्रकार मुख्य मार्ग से मेरे साथ हो लिया, मुझे पता ही नहीं चला। मेरे साथ दो स्थानीय साथी श्री चमोला, ड्राइवर, और बैंक प्रबंधक श्री खण्डूरी तथा जिला सहकारी बैंक, गोपेश्वर के चीफ एकाउंटेंट श्री खरे भी थे। इनमें से मैं सबसे कम उम्र का था। ये लोग धीरे-धीरे और टेढे रास्ते से चल रहे थे। तुंगनाथ मंदिर नजदीक दिखाई दे रहा था। आसपास घने चीड़ और अन्य हिमालयन वृक्ष थे, हरबेरियम के लिए उनकी पत्तियां, फूल आदि तोड़ कर अपने पास रख रहा था। अचानक वृक्ष आदि विलीन हो गए, उजाड़ चोटी में तुंगनाथ मंदिर सामने दिख रहा था। एक झबरा काले रंग का श्वान मेरे आगे पीछे चल रहा था। दूसरों से पहले मंदिर पहुंचने के लिए, मैं सीधाई में चढ़ने लगा। आक्सीजन की कमी पहले ही महसूस होने लगी थी। आसपास कोई पेड़ व झाड़ नहीं था। बस चारों ओर भेड़ों की लेंडी फैली थी। मुझे सांस लेने में दिक्कत होने लगी, लगा मुंह से खून आ जायेगा। वहीं उसी हालात में धम्म से बैठ गया। उस समय साथ आया श्वान मेरे साथ आ कर सट कर बैठ गया। ऐसा लगा जैसे कोई मुझे समझा रहा है, घबड़ाओ नहीं, मैं साथ हूं। कई गहरी सांस ली, श्वान के शरीर को सहलाया, लगा कि उसका मेरा कोई कई जन्मों का रिश्ता हो। कोई फरिश्ता मेरे साथ चल रहा है। फिर तब तक मेरे साथी आते दिखे, और मैं उनसे पहले तुंगनाथ मंदिर के सामने पहुंच कर, हिमालय की तुंग शिखर पर विराजमान आदि शंकर से रक्षा और सुरक्षा हेतु अनुनय विनय कर पूरे विश्व के कल्याण की प्रार्थना करता रहा। मेरे साथी भी आ चुके थे, साथ लाया प्रसाद चढ़ा कर सभी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अभिभूत हो गये।वह श्वान पुनः मेरे साथ ही लौटा, उसके साथ फ़ोटो लिए। सभी कह रहे थे, भगवान शंकर ने मेरी रक्षा और मार्गदर्शन हेतु स्वयं पधारे थे। वापस मुख्य मार्ग पर आ कर श्वान को श्रद्धा भाव से प्रसाद और बिस्कुट आदि खिलाया। वह दृश्य वह अमिट चित्र आज़ भी मेरे मन मस्तिष्क के एलबम में सुरक्षित है। यह यात्रा मैंने भगवान केदारनाथ के दर्शन के बाद भारत चीन की सीमा पर बनी सड़क से चलते हुए तुंगनाथ भगवान के दर्शन का लाभ मिला था। इसे जीवन की बड़ी उपलब्धि मानता हूं। आपके लेख ने सारी स्मृतियां ताजी कर दी। धन्यवाद।
राम औतार सिंह खंगार नीम मैन लखनऊ।