चित्र व आलेख- विकास वैभव
Rai Praveen Palace, Orchha (M.P.)- ओरछा झाॅंसी से 16 किमी॰ की दूरी पर म० प्र० की सीमा में स्थ्ति एक सुन्दर, धार्मिक एवं प्राकृतिक स्थल है। झाॅंसी-मानिकपुर रेलवे लाईन पर स्थित ओरछा रोड स्टेशन से ओरछा मात्र 6 किमी॰ की दूरी पर स्थित है। इसके आसपास के क्षेत्र में घना जंगल है, यहाॅं इमारती एवं जलाऊ लकड़ी प्रचुर मात्रा में पैदा होती है। जहाॅंगीर महल के उत्तर में राय प्रवीण महल या आनन्द-महल प्रासाद स्थित है। इस दो मंजिला इमारत का निर्माण मधुकर शाह के पुत्र इन्द्रजीत सिंह ने अपनी प्रियतमा राय प्रवीण के लिये करवाया था। दुखण्डे प्रासाद के ऊपरी प्रकोष्ठ की प्राचीरों पर चित्रण है। सभी चित्रण कौड़ी के चूने से निर्मित वज्रलेप पर लिखे गये है। भित्ति-चित्रण बुन्देली शैली का है।

राय प्रवीण एक कुशल नृतकी के साथ ही साथ कवियत्री, संगीतकार तथा कुशल घुड़सवार भी थी। यहाॅं संगीत साहित्य व नृत्य का अनोखा संगम रहा है। ओरछा राज्य के राज कवि आचार्य केशवदास की शिष्या थी प्रवीणराय। प्रवीणराय की काव्य प्रतिभा एवं नृत्यकला से प्रभावित होकर ओरछा नरेश इन्द्रजीत सिंह ने उसे प्रेयसी रूप में स्वीकार कर लिया था और प्रवीणराय भी इन्द्रजीत सिंह को अपना पति ही मानती थी। प्रवीणराय की ख्याति ओरछा के बाहर तक फैल गई थी। अकबर ने ओरछा नरेश इन्द्रजीत सिंह को अपमानित करने के लिये प्रवीणराय को मुगल दरबार में उपस्थित करने का आदेश दे डाला। अकबर के दरबार में प्रवीणराय की काव्य प्रतिभा की परीक्षा ली गई। अन्त में प्रवीणराय ने विनय पूर्वक एक दोहा और कहा- विनती राय प्रवीण की सुनिये साह सुजान, झूठी पातर भखत हैं बारी, वायस, स्वान। इतनी निर्भीक थी राय प्रवीण, यह था बुन्देली नारी का काव्य शौर्य और छन्दशास्त्र।

निकट के दर्शनीय स्थल- जहाॅंगीर महल, राजा महल, श्री रामराजा मन्दिर, सावन भादों स्तम्भ, हरदौल की बैठक, चतुर्भुज मन्दिर, लक्ष्मी मन्दिर आदि।
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