Home स्थापत्य- मध्य प्रदेश सम्राट अशोक का शिलालेख, गुजर्रा (दतिया,म.प्र.)

सम्राट अशोक का शिलालेख, गुजर्रा (दतिया,म.प्र.)

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चित्र व आलेख- विकास वैभव

  Inscription of Emperor Ashoka,Gujarra (Datia, M.P.)- दतिया नगर (ने॰हा॰-75) से लगभग 10 किमी॰ दूर दक्षिण में गुजर्रा नामक एक प्राचीन गाॅंव है। उन्नाव-बालाजी से दतिया मार्ग पर लगभग 3 किमी दूर ग्राम पराशरी से बाई ओर लगभग 2.6 किमी की दूरी पर स्थित है ग्राम गुजर्रा।  इस गाॅंव के प्राईमरी स्कूल के सामने की कच्ची सड़क से 850 मीटर दूर सिद्धि की टोरिया के नीचे एक बलुआ पत्थर की अर्धगोलाकार चट्टान है। चट्टान पर सम्राट अशोक महान का शिलालेख खुदा हुआ है। आज से लगभग 2300 वर्ष पूर्व सम्राट अशोक ने इस स्थान की यात्रा की थी और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु यह शिलालेख अंकित करवाया।        सम्राट अशोक के काल में चेदी क्षेत्र (वर्तमान बुन्देलखण्ड) उनके अधीन रहा, सम्राट अशोक ने अनेक स्थानों पर बौद्ध विहारों एवं मठों का निर्माण करवाया। उस समय समस्त बुन्देलखण्ड क्षेत्र कौशाम्बी प्रान्त में था। विदिशा-कौशाम्बी राजपथ वर्तमान भरहुत से होकर जाने तथा सम्राट अशोक के विदिशा में रहने के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं।  

इस शिलालेख में महत्व की बात यह है कि इस में सम्राट अशोक के निजी नाम का उल्लेख है। इस लेख में कुछ ऐसे अवतरण है जो अन्यत्र नहीं पाये जाते। देवानांप्रिय अशोक राजा की ( यह विज्ञप्ति )। ‘‘ ढाई वर्ष बीत गये मैं उपासक था, किन्तु अधिक पराक्रम नहीं किया । डेढ़ वर्ष हुए मैंने संघ की शरण ली। मैंने अधिक पराक्रम किया, ऐसा कहा। इस बीच में जम्बुदीप में जो देवता अमिश्र थे, वे देवता मनुष्यों से मिश्र किये गये, यह पराक्रम का फल है। न यह केवल महान से ही प्राप्त होने में शक्य है। पराक्रम करने वाले धर्माचरण करने वाले और प्राणियों में संयम करने वाले छुद्र (छोटे व्यक्ति) से भी विपुल स्वर्ग प्राप्त करना शक्य है। अतः इस प्रयोजन के लिए सह श्रावण किया गया और उदार धर्म का आचरण करें और योग को प्राप्त हो, सीमावर्ती लोग भी जाने। क्या धर्माचरण चिरस्थायी होगा, यह धर्माचरण अत्यन्त बढ़ेगा। यह श्रावण 256 वें पड़ाव ( प्रवास ) में सुनाया गया।
निकट के दर्शनीय स्थल- श्री पीताम्बरा पीठ (दतिया), दतिया दुर्ग, झाॅंसी दुर्ग आदि।

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