चित्र व आलेख- विकास वैभव
Baithak of King Mardan Singh, Bijrautha (Lalitpur, U.P.)- राजा मर्दन सिंह द्वारा लगभग 18वीं- 19 वीं शताब्दी में निर्मित यह बैठक बिजरौठा में स्थित है। तालबेहट से जखौरा मार्ग पर 10 किमी॰ की दूरी पर स्थित बिजरौठा रेलवे स्टेशन भी है। 1857 ई॰के स्वतन्त्रता संग्राम में राजा मर्दन सिंह ने सक्रिय भाग लिया था। 1857 ई॰ के स्वतन्त्रता संग्राम में यह बैठक राजा मर्दन सिंह सहित रणवांकुरों के नियोजन संयोजन का प्रमुख केन्द्र था। सन् 1857 ई॰ की क्रान्ति की अहम बैठकें इसी स्थान पर होती थीं। राजा मर्दन सिंह की शौर्य स्थली बिजरौठा में प्रकृति एवं आध्यात्म का अलौकिक रूप देखने को मिलता है।

चन्देरी, बानपुर, तालबेहट और गढ़ाकोटा रियासत के राजा मर्दन सिंह का जन्म सन् 1799 ई॰ में हुआ था। इनके पिता मोद प्रहलाद चन्देरी रियासत के राजा थे। सन् 1811 ई॰ में ग्वालियर के सिंधिया ने चन्देरी पर आक्रमण कर उस पर अपना आधिपत्य कर लिया। सन् 1830 ई॰ में मोद प्रहलाद ने बानपुर (ललितपुर) को अपनी राजधानी बनाया। सन् 1842 ई॰ में मोद प्रहलाद की मृत्यु उपरान्त मर्दन सिंह बानपुर के राजा बने। जब ब्रिटिश सेनापति जनरल ह्यूरोज रानी का सामना करने झाॅंसी की ओर बढ़ा, तब मर्दन सिंह एवं शाहगढ़ के राजा बखतवली सिंह ने मदनपुर घाटी एवं नाराहट घाटी में मोर्चाबन्दी की। गद्दारों की सूचना के कारण ह्यूरोज इस मोर्चाबन्दी को तोड़ कर झाॅंसी रवाना हो गया।
ग्वालियर में झाॅंसी की रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान के बाद अंग्रेजों ने मर्दन सिंह एवं बखतवली सिंह को बंदी बनाकर लाहौर जेल भेज दिया, बाद में राजा मर्दन सिंह को मथुरा जेल लाया गया। इस जेल में राजा मर्दन सिंह अंग्रेजों की क्रूरता को सहन करते हुए 22 जुलाई सन् 1879 ई॰ में अमर शहीद हो गए।
निकट के दर्शनीय स्थल- तालबेहट का किला, बांसा बिल्डिंग (ललितपुर)।
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