चित्र व आलेख- विकास वैभव
Banpur Fort Lalitpur, U.P.)- ललितपुर से लगभग 42 किमी तथा ललितपुर की तहसील महरौनी से 14 किमी की दूरी पर बानपुर के नाम से विख्यात एक कसबा है। जो बुन्देलखण्ड के सुरम्य भू-भाग में विस्तृत वैभव, प्राचीन स्थापत्य के गौरव और आधुनिक विकास से वंचित शौर्य स्थल है। राजा मर्दन सिंह की शौर्य स्थली बानपुर में प्रकृति एवं आध्यात्म का अलौकिक रूप देखने को मिलता है।

चन्देरी, बानपुर, तालबेहट और गढ़ाकोटा रियासत के राजा मर्दन सिंह का जन्म सन् 1799 ई॰ में हुआ था। इनके पिता मोद प्रहलाद चन्देरी रियासत के राजा थे। सन् 1811 ई॰ में ग्वालियर के सिंधिया ने चन्देरी पर आक्रमण कर उस पर अपना आधिपत्य कर लिया। सन् 1830 ई॰ में मोद प्रहलाद ने बानपुर (ललितपुर) को अपनी राजधानी बनाया। सन् 1842 ई॰ में मोद प्रहलाद की मृत्यु उपरान्त मर्दन सिंह बानपुर के राजा बने। जब ब्रिटिश सेनापति जनरल ह्यूरोज रानी का सामना करने झाॅंसी की ओर बढ़ा, तब मर्दन सिंह एवं शाहगढ़ के राजा बखतवली ने मदनपुर घाटी एवं नाराहट घाटी में मोर्चाबन्दी की। गद्दारों की सूचना के कारण ह्यूरोज इस मोर्चाबन्दी को तोड़ कर झाॅंसी रवाना हो गया।
ग्वालियर में झाॅंसी की रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान के बाद अंग्रेजों ने मर्दन सिंह एवं बखतवली सिंह को बंदी बनाकर लाहौर जेल भेज दिया, बाद में राजा मर्दन सिंह को मथुरा जेल लाया गया। इस जेल में राजा मर्दन सिंह अंग्रेजों की क्रूरता को सहन करते हुए 22 जुलाई सन् 1879 ई॰ में अमर शहीद हो गए।

ध्वंनावशेषो के रुप में विद्यमान राजा मर्दन सिंह द्वारा निर्मित यह किला (लगभग 18वीं-19 वीं शताब्दी) धरातल से पर्याप्त ऊॅंचाई पर स्थित है। राजप्रसाद तथा परकोटे आदि का खण्डित भाग इसकी विशालता और भव्यता का द्योतक है। 1857 ई॰ के स्वतन्त्रता संग्राम में राजा मर्दन सिंह ने सक्रिय भाग लिया जिस के फलस्वरुप उनका यह किला ब्रिटिश सेनाओं द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। राजा मर्दन सिंह के किले में जिसका अधिकाॅंश भाग अंग्रेज जनरल ह्यूरोज ने नष्ट करवा दिया था, उसके शेष भाग में स्थित बाॅंके बिहारी जी का मन्दिर अद्भुत मूर्तिकला का नमूना है।

निकट के दर्शनीय स्थल- प्राचीन मकबरा (बार), बांसा बिल्डिंग (ललितपुर)।
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