आलेख- विकास वैभव सिंह
Sahodrabai Rai, Sagar (M.P.)- स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी श्रीमती सहोद्राबाई राय का जन्म मध्य प्रदेश के दमोह जिले की पथरिया तहसील के एक छोटे से गाॅंव बोथराई में हुआ था। इनके पिता वीरेन्द्र सिंह खंगार एक साधारण किसान थे। 15 वर्ष की आयु में इनका विवाह दमोह जिले के खेरी गाॅव के मुरलीधर खंगार के साथ हुआ था। बीमारी के कारण इनके पति का देहान्त हो गया और पति के देहान्त के बाद इन्हें अनेक कष्टों का सामन करना पड़ा। कतिपय कारणों से उन्होंने ससुराल का परित्याग कर दिया और अपनी बड़ी बहन के पास कर्रापुर (सागर) में आकर रहने लगी, जहाॅं अधिकांश महिलाएं बीड़ी बनाती थीं। वह भी बीड़ी बनाने लगीं और बीड़ी मजदूरों के हक की लड़ाई भी लड़ी। उन्होंने सन् 1942 में 23 वर्ष की आयु में महात्मा गाॅंधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और गिरफ्तार हुई, उन्हे 6 माह की सजा हुई। उन्होंने सन् 1945 में नौखाली में हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिये भी काम किया।
सन् 1955 में गोवा मुक्ति आन्दोलन के दौरान गोवा में राष्ट्रीय ध्वज फहराते समय पुर्तगाली सैनिकों ने उन पर गोलियां चला दी और उन्हें तीन गोलियां लगीं, लेकिन सहोद्राबाई राय ने अभूतपूर्व साहस का परिचय देते हुए अपने जीवन की परवाह किए बिना राष्ट्रीय ध्वज को जमीन पर नहीं गिरने दिया। उनकी इस वीरता से प्रभावित होकर देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उन्हें देखने के लिए अस्पताल पहुॅंचे थे। सहोद्राबाई राय के स्वस्थ होने पर नेहरू जी ने उन्हें राजनीति की मुख्यधारा में लाने के लिए सन् 1957 में सागर लोकसभा सीट पर प्रत्यासी घोषित किया। जिसमें सहोद्राबाई राय चुनाव जीतीं और सागर लोकसभा की पहली महिला सांसद चुनी गई। वे दूसरी, तीसरी और पाॅंचवी लोक सभा की सदस्य रहीं। उन्होंने देश के विभाजन के बाद सिंधियों के पुनर्वास में भी मदद की तथा हरिजन कल्याण, प्रौढ़ शिक्षा, खादी विकास, महिला संगठन जैसे कई सामाजिक कार्य किए। उन्होंने सागर जिले के कर्रापुर गाॅंव में अस्पताल बनाने के लिए अपनी जमीन दान कर दी, जिस पर आज भी उनके नाम पर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र संचालित है। अंत में कैंसर रोग से लड़ते हुए सन् 1981 में उनका स्वर्गवास हो गया।
सहोद्राबाई राय पढ़ी-लिखी नहीं थी, वह संघर्ष कर संसद तक पहुंॅची थी। वह संसद हो या फिर आम सभा, सभी में बुन्देली भाषा में ही भाषण देती थीं। सन् 1986 में स्थापित शासकीय महिला पाॅलिटेक्निक कालेज की स्थापना पराक्रम और शौर्य की प्रतीक वीरांगना सहोद्राबाई राय के नाम पर की गई है। राय (खंगार क्षत्रिय) परिवार में जन्मी सहोद्राबाई राय बचपन से ही निडर व साहसी थीं। बीड़ी बनाने से लेकर संसद तक का उनका सफर संघर्ष से भरा था, इसके बावजूद उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में अपनी अमिट छाप छोड़ी और अनुकरणीय योगदान दिया।
