चित्र व आलेख- विकास वैभव
Gwalior Fort (M.P. )- इस दुर्ग का निर्माण सन् 727 में सूर्यसेन नामक एक स्थानीय सरदार ने करवाया था, जो इस दुर्ग से 12 किमी दूर सिंहोनिया गाॅंव का रहने वाला था। तीन वर्ग किमी के दायरे में फैले इस दुर्ग की ऊंचाई 350 फीट है। लाल बलुई पत्थर से निर्मित यह दुर्ग गोपांचल नामक पहाड़ी पर स्थित है। इस किले पर कई राजपूत राजाओ ने राज किया है। किले स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इस पर पाल वंश का राज रहा, इसके बाद इस पर प्रतिहार वंश का राज रहा। सन् 1023 ई॰ मे मोहम्मद गजनी ने इस किले पर आक्रमण किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। सन् 1196 ई॰ में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस किले को अपने अधीन किया लेकिन सन् 1211 ई॰ में उसे भी हार का सामना करना पड़ा। फिर सन् 1231 ई॰ में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने इसे अपने अधीन किया।

इसके बाद राजा देववरम ने ग्वालियर में तोमर राज्य की स्थापना की। इस वंश के सबसे प्रसिद्ध राजा मान सिंह तोमर (1486-1516) थे जिन्होंने अपनी पत्नी मृगनयनी के लिये दुर्ग के अन्दर स्थित गूजरी महल का निर्माण करवाया था। तोमर वंश के बाद क्रमशः सूरी वंश, मुगल व सिंधिया वंश ने यहाॅं राज किया। 17 जून 1858 को झाॅंसी की रानी लक्ष्मीबाई ने मराठा विद्रोहियों के साथ मिलकर इस किले पर अधिकार कर लिया। लेकिन इस जीत के जश्न में व्यस्त विद्रोहियों पर जनरल ह्यूरोज की ब्रिटिश सेना ने हमला कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई खूब लड़ी, लेकिन इस दौरान वे बुरी तरह घायल हो गईं और 18 जून 1858 को स्वर्ण-रेखा नदी के किनारे वीरगति को प्राप्त हुईं।

यह किला देश के बड़े किलो मे से एक है और इसका भारतीय इतिहास में महत्वपूर्णं स्थान है। इसके साथ ही मान मन्दिर महल, भीम सिंह की छतरी, तेली मन्दिर तथा सहस्त्रबाहु मन्दिर भी दर्शनीय है।
निकट के दर्शनीय स्थल-तेली मन्दिर (ग्वालियर दुर्ग), श्री पीताम्बरा पीठ (दतिया), दतिया दुर्ग, नरवर दुर्ग (शिवपुरी) आदि
ग्वालियर के क़िले की ऐतिहासिक जानकारी। हम जैसे बहुत से व्यक्ति होंगे जिन्होंने यह इतिहास पहली बार जाना होगा। आपको नमन🙏