चित्र व आलेख- विकास वैभव
Cenotaph of Maharaja Gangadhar Rao, Jhansi (U.P.) महाराजा छत्रशाल ने जब बुन्देलखण्ड के वृहद भाग को तीन भागों में बांटकर, पेशवा बाजीराव को अपना तीसरा पुत्र मानते हुए झाँसी संभाग दे दिया, तब सन् 1804 ई. तक झाँसी दुर्ग पूना के पेशवा के नियन्त्रण में रहा। सन् 1804 ई. में मराठा सरदार शिवरावभाऊ ने अंग्रेजों से संधि करके झाँसी को पूना के पेशवा से मुक्त कर लिया और स्वतन्त्र रूप से शासन करने लगे। सन् 1817 ई. में शिवरावभाऊ के पश्चात उनके पौत्र रामचन्द्र राव (1817-35 ई.) राजा बने, क्योंकि भाऊ के ज्येष्ठ पुत्र कृष्ण राव की मृत्यु उनके समय में ही हो गई थी। अतः ज्येष्ठ पुत्र के पुत्र के नाते अंग्रेजों ने रामचन्द्र राव को ही मान्यता दी। रामचन्द्र राव की मृत्यु के पश्चात उनके चाचा रघुनाथ राव (1835-38 ई.) एवं गंगाधर राव (1838-53 ई.) राजा बने।

शहर के पूर्व में लक्ष्मी ताल के पश्चिम किनारे पर यह छतरी दुर्ग शैली के प्रांगण में एक कक्षीय निर्मित है। सन् 1853 ई. में झाँसी के महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु उपरांत महारानी लक्ष्मीबाई ने अपने पति की स्मृति में इस समाधि का निर्माण करवाया था। प्रांगण के चारों कोनों पर एक-एक भव्य अष्टकोणीय गुम्बद से आवृत बुर्ज है। प्रांगण की प्राचीर पर प्रत्येक दिशा में कमल पंखुड़ियों से आवृत धनुषाकार वितान बनाए गए हैं। उत्तर दिशा के वितान पर दो सिंहों के मध्य महाराजा गंगाधर राव की प्रतिमा चूने से बनाई गई है। झाँसी में किसी राजपुरुष की यह एकमात्र प्रतिमा है, अतः अत्यंत महत्वपूर्ण है।

मुगल शैली में ईंट से निर्मित यह समाधि चाहर दीवारी के मध्य, उद्यान में एक बारादरी के रूप में बनाई गई है। यह बलुआ पत्थर की बारादरीनुमा लघु छतरी है, इसमें प्रवेश हेतु चारों तरफ तीन-तीन द्वार हैं। इन द्वारों के मेहराब तथा बहुकोणीय स्तम्भों पर लता, पुष्पों एवं कमल पंखुड़ियों को सुन्दरता से उत्कीर्ण किया गया है। इसकी छत सपाट है तथा चारों ओर अलंकृत छज्जा लगा है। छज्जे के टूङों के मध्य बने लघु चित्र अब समाप्त हो गए है। स्मारक में कौङी तथा चूने के मसाले से बनी विभिन्न आकृतियाँ देखने योग्य है। यह छतरी झाँसी की उत्कृष्ट स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण है। वर्तमान समय में यह स्मारक पुरातत्व विभाग के अधीन है तथा महाराजा गंगाधर राव की पुण्यतिथि पर यहाँ कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
निकट के दर्शनीय स्थल- महालक्ष्मी मन्दिर एवं काली मन्दिर।
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