चित्र व आलेख- विकास वैभव
Kanchana Ghat, Orchha (M.P.)- ओरछा झाॅंसी से 16 किमी॰ की दूरी पर म० प्र० की सीमा में स्थ्ति एक सुन्दर, धार्मिक एवं प्राकृतिक स्थल है। झाॅंसी-मानिकपुर रेलवे लाईन पर स्थित ओरछा रोड स्टेशन से ओरछा मात्र 6 किमी॰ की दूरी पर स्थित है। बुन्देला राजाओं की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध ओरछा के मध्यकालीन स्मारक स्थापत्य कला एवं भित्ति चित्रों के लिये प्रसिद्ध हैं। ओरछा झाॅसी से 16 किमी की दूरी पर स्थित है। ओरछा का पुराना नाम तुंगारण्य है, क्यों कि यह महर्शि तुंग की तपोभूमि है। यहाॅं पर सारस्वत ऋषि ने अन्य ऋषियों को वेदाध्ययन कराया था। बुन्देलों से पूर्व परिहारों ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और चन्देलों ने उसे ढहा दिया। इस का प्राचीन नाम ऊॅंदछा, ओंदछा तथा ओड़छा है। जिससे परिवर्तित हो कर कालान्तर में इसका नाम ओरछा हो गया। महाराजा रुद्रप्रताप ने सन् 1531 में ओरछा के सुरम्य वातावरण को देखते हुये, इस क्षेत्र को अपने अधिपत्य में ले लिया था । इस प्रकार ओरछा के प्रथम शासक के रूप में इनको जाना जाता है।

ओरछा में बेतबा नदी के तट पर कंचना घाट का निर्माण राजा वीर सिंह जू देव ने करवाया था। कहा जाता है कि इन घाटों पर ओरछा राज्य की रानियाॅं एवं पटरानियाॅं स्नान करने आती थीं। सन् 1592 में महाराजा मधुकर शाह के दिवंगत होने पर कंचना घाट पर ही इनकी समाधि बनवाई गई। इसी घाट पर जुझार सिंह ( 1627-35 ) की रानी की मड़िया है जो भाभी जी की मड़िया के नाम से प्रसिद्ध है। राष्ट्रपिता पूज्य बापू जी की भस्म का विसर्जन 12 फरवरी 1948 ई॰ को इसी घाट पर हुआ था।
निकट के दर्शनीय स्थल- श्री रामराजा मन्दिर, सावन भादों स्तम्भ, हरदौल की बैठक, लक्ष्मी मन्दिर आदि।

बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख, एवं ओरछा के मंदिरों का सुंदर चित्र
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