चित्र व आलेख- विकास वैभव
Rani Mahal, Jhansi (u.p.)- भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में रानीमहल का अहम स्थान है। रानी लक्ष्मीबाई द्वारा निवास के रूप में प्रयुक्त किए जाने वाले इस तीन मंजिला महल का निर्माण नेवालकर राजवंश के संस्थापक रघुनाथ राव द्वितीय (1769-96) ने करवाया था। झाँसी के कम्पनी राज्य में विलय हो जाने के पश्चात रानी लक्ष्मीबाई ने दुर्ग स्थित महल को छोड़कर इस महल को अपना आवास बनाया। जून 1857 ई0 में झाँसी पर उनका शासन स्थापित होते ही वे पुनः दुर्ग स्थित महल में रहने लगीं।

दो मंजिल के इस महल में प्रवेश हेतु विशाल द्वार है। इसके ठीक ऊपर तीन लघु द्वार बना कर महल के मुख्य द्वार को भव्यता दी गई है। ड्योढी के पश्चात प्रांगण है, इसमें चारों ओर दोहरे दालान बने थे, इसका पश्चिमी भाग वास्तविक रूप में नहीं है। इस महल के प्रांगण में एक छोटा कुऑ और दोनों ओर दो फब्बारे बने हैं। अनेक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी इस रानीमहल में ऊपर की मंजिल के पूर्वी भाग की वाह्य दीवार पर कटावदार मेहराब की अनुकृतियों में मुगल सुराही एवं मयूर अंकित हैं। इसी पूर्वी भाग के दक्षिणी सिरे पर तीन द्वारों युक्त सुन्दर मण्डप है। मण्डप से लगा हुआ कक्ष रानीमहल का सबसे सुन्दर कक्ष है। इस कमरे में तथा उसी से लगे हुए जीने में बुन्देली शैली का चित्रांकन है। इनमें मानव आकृतियां न होकर बेलबूटा, गुलदस्तों के पार्श्वों में मयूर, कपोत, सार्स, मृग एवं खरगोश आदि पशु पक्षियों का चित्रण है। चित्रांकन अत्यंत बारीक है तथा आवश्यकतानुसार इनमें सभी रंगों का प्रयोग किया गया है, परन्तु गहरे लाल रंग का प्रयोग अधिक है। दक्षिण एवं उत्तर दिशा के मंजिले पर भी कक्ष है , इनमें चित्रण समाप्त हो चुके हैं।

रानी के समय में पहले तल के हाल में चुंगी तथा लगान जमा होती थी, जबकि दूसरी मंजिल में रानी अतिथियों से मुलाकात करतीं थीं। अंग्रेजों ने यह महल कोतवाली के रूप में संचालित किया। सन् 1970 में पुरातत्व विभाग ने इसे अपने संरक्षण में लेकर इसकी देख-रख करना शुरू कर दी। वर्तमान समय में महल के अन्दर इस क्षेत्र के विभिन्न स्थानों झाँसी, ललितपुर, मदनपुर, बरुआसागर, दुधई आदि के साथ ही बुन्देलखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त गुप्तोत्तर काल से लेकर मध्यकालीन समय तक की मूर्तियां एवं वास्तु-खण्ड प्रदर्शित हैं, जो शिल्प कला के अद्भुत नमूने हैं।

मराठा काल में इसके समीप पुस्तकालय नजरबाग तथा अस्तबल था। रानीमहल के सामने बगीचा हुआ करता था, जो प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम युद्ध में अंग्रेजों द्वारा नष्ट कर दिए थे। वर्तमान में महल का मुख्य भाग ही संरक्षित है, शेष भाग नागरिक आवासों में बदल गया है। वर्ष 1890 में तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर मिस्टर हार्डी ने रानीमहल के सामने के मैदान को बाजार का रूप दिया, जिसे ‘हार्डी गंज’ के नाम से पहचान मिली, जिसे बाद में क्रान्तिकारी नेता सुभाष चन्द्र बोस के नाम से ”सुभाष गंज” के रूप में पहचान मिली।

निकट के दर्शनीय स्थल- सिटी चर्च, गुसांई मन्दिर (फूटा चौपङा), झाँसी दुर्ग,राजकीय संग्रहालय एवं रघुनाथ राव महल आदि।
Bahut bahut sundar vikash bhai