चित्र व आलेख- विकास वैभव
Mahalakshmi Temple, Jhansi (u.p.)- नगर के पूर्व में लक्ष्मी ताल के पश्चिमी किनारे पर लक्ष्मी गेट के बाहर महालक्ष्मी मन्दिर स्थित है। नेवालकर राजवंश के प्रथम सूबेदार रघुनाथ राव द्वितीय (1769- 96 ई0) ने इस मन्दिर का निर्माण करवा कर अपनी कुलदेवी महालक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। इस दो मंजिला मन्दिर की प्रत्येक मंजिल में छह कक्ष एवं चार दालानें हैं। नीचे की मंजिल जगती के रूप में निर्मित है, ऊपर की मंजिल में जाने हेतु सामने जीना है। द्वार के मेहराब पर अलंकरण है, इसके ऊपर धनुषाकार वितान के दोनों ओर कमल पंखुड़ियों से सुसज्जित लघु गुम्बद हैं।

ऊपर की मंजिल में लघु प्रांगण के चारों ओर दालान तथा मध्य में गर्भगृह है। गर्भगृह का गुम्बद अधोमुख कमल, चक्र, कलश से सुशोभित है। गर्भगृह में सफेद संगमरमर की माॅ महालक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित है, मन्दिर के बाहर दीप स्तम्भ है। भूतल के गर्भगृह में नंदी, शिवलिंग, विष्णु, गणेश व भैरव आदि की उत्तर मध्यकालीन प्रतिमाएं विराजमान हैं। राजा गंगाधर राव ने इस मन्दिर के प्रबन्ध हेतु 4900 नानाशाही रुपए राजस्व की आमदनी वाले दो ग्राम कोछाभांवर तथा गोरामछिया देवी को अर्पित किए थे। सनद जारी करके राजा गंगाधर राव ने इस मन्दिर का सम्पूर्ण प्रबन्ध झाँसी के शासक परिवार को सौंप दिया था।

इस मन्दिर में रानी लक्ष्मीबाई अपनी सहेलियों संग पूजा अर्चना करने के लिए जातीं थीं उस समय इस मन्दिर में दीपावली के अवसर पर हिन्दू-मुस्लिम एक साथ मिलकर जश्न मनाते थे, रानी स्वयं उनके लिए भोजन भी परोसा करतीं थीं। महाराजा की मृत्यु के पश्चात रानी लक्ष्मीबाई मन्दिर का प्रबन्ध करतीं थीं। झाँसी राज्य के विलय के पश्चात कम्पनी सरकार ने इन ग्रामों को अधिगृहित कर लिया, अतः रानी अपने धन से मन्दिर का प्रबन्धन करने लगीं। स्वतन्त्रता युद्ध में अंग्रेजी सेना ने मन्दिर के बहुमूल्य वस्त्राभूषण लूट लिए थे। वर्तमान में यह मन्दिर राज्य पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। वर्तमान में भी दीपावली वाले दिन इस मन्दिर में विशेष भीड़ उमङती है।
निकट के दर्शनीय स्थल- काली मन्दिर एवं महाराजा गंगाधर राव की समाधी।