चित्र व आलेख- विकास वैभव
Shri Pitambra Peeth, Datia (M.P.)- ब्रह्मलीन पूज्यपाद अनन्त श्री विभूषित स्वामी जी महाराज का सन् 1929 में दतिया नगर में आगमन हुआ था। नगर की दक्षिण की ओर स्थित प्राचीन सिद्ध स्थान वनखण्डेश्वर को उन्होंने अपनी साधना स्थली के रूप में स्वीकार किया। उस समय यह स्थान एकान्त और उजाड़ था। पूज्यपाद की कृपा से यह स्थल धीरे धीरे विकसित होता रहा और आज के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में अपना विशिष्ठ स्थान बना चुका है।

पूज्यपाद स्वामी ब्रह्मलीन जी महाराज द्वारा दतिया में स्थापित श्री पीताम्बरा पीठ एक पूर्ण जाग्रत शक्तिपीठ है। कहते है सन् 1229 में स्वामी जी यहाॅ आकर रुके तब उसी रात उन्हें एक महत्मा का सपना हुआ और उन्होने माॅं पीताम्बरा की स्थापना करने के लिये कहा। पूज्यनीय श्री स्वामी जी महाराज सन् 1929 से 1935 तक 6 सालों तक अपनी घोर तपस्या में लीन रहे व पूज्यवाद के तान्त्रिक मार्गदशन में 5 जून सन् 1935 में चैथ तिथि पुष्य नक्षत्र को स्वामी जी द्वारा माॅं पीताम्बरा पीठ की प्रतिष्ठा की गई। पीताम्बरा पीठ के प्रागण में ही स्थित ‘माॅं धूमावती देवी’ का मन्दिर हे, जो कि सम्पूर्ण विश्व में भगवती धूमावती का एक मात्र मन्दिर है। जिस प्रकार प्रयोगशाला में प्रयोग सिद्ध होते है उसी प्रकार श्री पीताम्बरा पीठ में मंत्र सिद्ध होते है।
माता बगलामुखी दस विद्या में आठवीं महाविद्या हैं। इन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं। ये स्तम्भन की देवी हैं। सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिलकर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती। शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिये इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तम्भन होता है तथा जातक का जीवन निष्कंटक हो जाता है।

माता नवयोवना हैं और पीले रंग की साड़ी धारण करती हैं। सोने के सिेहासन पर विराजती हैं। तीन नेत्र और चार हाथ हैं, सिर पर सोने का मुकुट है, सिर पर सोने का मुकुट है, स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत हैं। शरीर पतला और सुन्दर है, रंग गोरा और स्वर्ण जैसी कांति है। सुमुखी हैं, मुखमण्डल अत्यंत सुन्दर हैं जिस पर मुस्कान छाई रहती है, जो मन को मोह लेता है। बगला शब्द संस्कृत के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है दुल्हन, अतः माॅं के अलोकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है।
स्वतन्त्र तंत्र के अनुसार भगवती बगलामुखी के प्रादुर्भाव की कथा इस प्रकार है कि सतयुग में सम्पूर्ण जगत को नश्ट करने वाला भयंकर तूफान आया। प्राणियों के जीवन पर संकट को देख कर भगवान विष्णु चिंतित हो गये। वे गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर भगवती को प्रसन्न करने के लिये तप करने लगे। श्री विद्या ने उस सरोवर से बगलामुखी रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिये तथा विध्वंसकारी तूफान का तुरन्त स्तम्भन कर दिया।
हल्दी रंग के जल से प्रकट होने और हल्दी का रंग पीला होने के कारण इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहा जाता हैं। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है, इसलिये इनके पूजन में पीले रंग की सामर्गी का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है, अतः साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिये। पीले फूल और नारियल चढ़ाने से देवी प्रसन्न होती हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढ़ाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है। बगलामुखी महाविद्या भगवान विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी हैं। श्री बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र के नाम से भी जाना जाता है।
निकट के दर्शनीय स्थल- दतिया का किला, रामराजा मन्दिर (ओरछा), सम्राट अशोक का शिलालेख (गुजर्रा), नरवर दुर्ग।
ऐतिहासिक एवं सिद्ध स्थान